Wednesday 9 June 2021

अव्यक्त

 कितना कुछ होता है 

अंदर

उफान की तरह।


भाषा पाती है 

अक्षम ख़ुद को। 

हज़ारों साल की कोशिशें

क़वायदें 

और दावे 

सब के सब पाए गए नाकाफ़ी। 


नाज़ुकी इतनी कि 

स्पंदन भी ख़तरा हो

दुर्धर्ष इतना कि 

ख़ारिज न किया जा सके। 


क़लम की रौशनाई 

कह नहीं पाती 

जो कोरे पन्ने 

कर जाते हैं बयां, 

कुछ एहसास 

अव्यक्त ही रह जाएँगे

पर रहेंगे, 

नरम गीले सीमेंट पर 

उकेरी गई आकृतियों की तरह 

जो जम कर हो जाएँगे 

ठोस

अमिट

अभिव्यक्त। 

Monday 7 June 2021

तुम्हारा होना

 तुम्हारा होना 

जैसे वक़्त की पीठ पर हस्ताक्षर

शाश्वत।

जाना तुम्हारा

पर बीतना नहीं,

एक अंतर्भूत एहसास।