Wednesday 2 October 2019

गांधी जयंती पर गोडसे

गांधी को समझने के दृष्टिकोण से भारतीयों के जीवन में प्राय: तीन चरण होते हैं:-
1. प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में गांधी एवं अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में लगातार पढ़कर उनके प्रति आदर एवं श्रद्धा के भाव पनपते हैं। किंतु, वह उम्र विश्लेषण की नहीं होती। पढ़ाया जाता है, हम पढ़ते हैं। हमारी स्मृति एवं संस्कार का निर्माण होता है और सभी राष्ट्रीय नायक उस बाल स्मृति/संस्कार में जगमगाते सितारों की तरह विराजमान होते हैं।
2. किशोरावस्था/आरंभिक युवावस्था एक अजीब सी बेसब्री एवं विरोधी तेवर की अवस्था होती है। इस चरण में विचारधारा विशेष द्वारा दुष्प्रचारित एवं अब फेसबुक/व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के फॉरवर्ड पर आधारित ज्ञान की वज़ह से देश/समाज की हर समस्या का कारण गांधी को मानने का फैशन सा होता है। देश के विभाजन का जिम्मेवार गांधी। भगत सिंह की फांसी को न रोकने का कसूरवार गांधी। गांधी न होते तो क्रांतिकारी बहुत पहले देश को आजाद करा चुके होते आदि आदि आदि। ऐसे न जाने कितने ही कपोल रूमानी और बदहवास कुतर्क देश के नुक्कड़ चौराहों पर चिर निरंतर बहसों में शामिल होकर इतिहास की धारा को मोड़ने की कोशिश में लगे हैं।
3. समय बीतता है, उम्र बढ़ती है। बाल्य मन की श्रद्धा और किशोर रूमानियत पीछे छूटती है। तर्क और विश्लेषण की कसौटी पर सारे नायक कसे जाते हैं। और तब हम गांधी को थोड़ा और बेहतर समझ पाते हैं। तब हम समझ पाते हैं कि अपने समकालीन कुछ शानदार व्यक्तित्व वाले नायकों की तुलना में साधारण होने के बावजूद कैसे वह सबसे असाधारण हैं। हम तटस्थ होकर उनका मूल्यांकन करते हैं और समझ पाते हैं कि देश-काल के विभेद के बावजूद आख़िर क्यों नेल्सन मंडेला से लेकर मार्टिन लूथर किंग जूनियर तक एवं अल्बर्ट आइंस्टीन से लेकर बराक ओबामा तक गांधीवाद में ही प्रेरणा ढूंढ़ते हैं। हम भक्ति के चश्मे से नहीं देखते फिर भी उनकी कमियों और तथाकथित ऐतिहासिक भूलों को वर्तमान के मापदंडों से नहीं बल्कि तात्कालिक परिस्थितियों के बरक्स रखकर निर्णयों को संपूर्णता में समझने की कोशिश करते हैं।

दुर्भाग्य से हम भारतीयों में से अधिकांश के जीवन में तीसरा चरण नहीं आ पाता।

गांधी को पढ़ा जाना चाहिए। अधिक से अधिक। उन पर विमर्श हो, संवाद हो, उनकी आलोचना हो, उन पर प्रहार हो, उन्हें ख़ारिज कीजिए, किंतु उन्हें पढ़कर। WhatsApp University के forwards के आधार पर नहीं।

देर रात यह लिखना पड़ा क्योंकि #गांधी_जयंती के दिन ट्विटर पर सबसे ज्यादा #गोडसे_अमर_रहे ट्रेंड कर रहा था।