गांधी को समझने के दृष्टिकोण से भारतीयों के जीवन में प्राय: तीन चरण होते हैं:-
1. प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में गांधी एवं अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में लगातार पढ़कर उनके प्रति आदर एवं श्रद्धा के भाव पनपते हैं। किंतु, वह उम्र विश्लेषण की नहीं होती। पढ़ाया जाता है, हम पढ़ते हैं। हमारी स्मृति एवं संस्कार का निर्माण होता है और सभी राष्ट्रीय नायक उस बाल स्मृति/संस्कार में जगमगाते सितारों की तरह विराजमान होते हैं।
2. किशोरावस्था/आरंभिक युवावस्था एक अजीब सी बेसब्री एवं विरोधी तेवर की अवस्था होती है। इस चरण में विचारधारा विशेष द्वारा दुष्प्रचारित एवं अब फेसबुक/व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के फॉरवर्ड पर आधारित ज्ञान की वज़ह से देश/समाज की हर समस्या का कारण गांधी को मानने का फैशन सा होता है। देश के विभाजन का जिम्मेवार गांधी। भगत सिंह की फांसी को न रोकने का कसूरवार गांधी। गांधी न होते तो क्रांतिकारी बहुत पहले देश को आजाद करा चुके होते आदि आदि आदि। ऐसे न जाने कितने ही कपोल रूमानी और बदहवास कुतर्क देश के नुक्कड़ चौराहों पर चिर निरंतर बहसों में शामिल होकर इतिहास की धारा को मोड़ने की कोशिश में लगे हैं।
3. समय बीतता है, उम्र बढ़ती है। बाल्य मन की श्रद्धा और किशोर रूमानियत पीछे छूटती है। तर्क और विश्लेषण की कसौटी पर सारे नायक कसे जाते हैं। और तब हम गांधी को थोड़ा और बेहतर समझ पाते हैं। तब हम समझ पाते हैं कि अपने समकालीन कुछ शानदार व्यक्तित्व वाले नायकों की तुलना में साधारण होने के बावजूद कैसे वह सबसे असाधारण हैं। हम तटस्थ होकर उनका मूल्यांकन करते हैं और समझ पाते हैं कि देश-काल के विभेद के बावजूद आख़िर क्यों नेल्सन मंडेला से लेकर मार्टिन लूथर किंग जूनियर तक एवं अल्बर्ट आइंस्टीन से लेकर बराक ओबामा तक गांधीवाद में ही प्रेरणा ढूंढ़ते हैं। हम भक्ति के चश्मे से नहीं देखते फिर भी उनकी कमियों और तथाकथित ऐतिहासिक भूलों को वर्तमान के मापदंडों से नहीं बल्कि तात्कालिक परिस्थितियों के बरक्स रखकर निर्णयों को संपूर्णता में समझने की कोशिश करते हैं।
दुर्भाग्य से हम भारतीयों में से अधिकांश के जीवन में तीसरा चरण नहीं आ पाता।
गांधी को पढ़ा जाना चाहिए। अधिक से अधिक। उन पर विमर्श हो, संवाद हो, उनकी आलोचना हो, उन पर प्रहार हो, उन्हें ख़ारिज कीजिए, किंतु उन्हें पढ़कर। WhatsApp University के forwards के आधार पर नहीं।
देर रात यह लिखना पड़ा क्योंकि #गांधी_जयंती के दिन ट्विटर पर सबसे ज्यादा #गोडसे_अमर_रहे ट्रेंड कर रहा था।
1. प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में गांधी एवं अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में लगातार पढ़कर उनके प्रति आदर एवं श्रद्धा के भाव पनपते हैं। किंतु, वह उम्र विश्लेषण की नहीं होती। पढ़ाया जाता है, हम पढ़ते हैं। हमारी स्मृति एवं संस्कार का निर्माण होता है और सभी राष्ट्रीय नायक उस बाल स्मृति/संस्कार में जगमगाते सितारों की तरह विराजमान होते हैं।
2. किशोरावस्था/आरंभिक युवावस्था एक अजीब सी बेसब्री एवं विरोधी तेवर की अवस्था होती है। इस चरण में विचारधारा विशेष द्वारा दुष्प्रचारित एवं अब फेसबुक/व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के फॉरवर्ड पर आधारित ज्ञान की वज़ह से देश/समाज की हर समस्या का कारण गांधी को मानने का फैशन सा होता है। देश के विभाजन का जिम्मेवार गांधी। भगत सिंह की फांसी को न रोकने का कसूरवार गांधी। गांधी न होते तो क्रांतिकारी बहुत पहले देश को आजाद करा चुके होते आदि आदि आदि। ऐसे न जाने कितने ही कपोल रूमानी और बदहवास कुतर्क देश के नुक्कड़ चौराहों पर चिर निरंतर बहसों में शामिल होकर इतिहास की धारा को मोड़ने की कोशिश में लगे हैं।
3. समय बीतता है, उम्र बढ़ती है। बाल्य मन की श्रद्धा और किशोर रूमानियत पीछे छूटती है। तर्क और विश्लेषण की कसौटी पर सारे नायक कसे जाते हैं। और तब हम गांधी को थोड़ा और बेहतर समझ पाते हैं। तब हम समझ पाते हैं कि अपने समकालीन कुछ शानदार व्यक्तित्व वाले नायकों की तुलना में साधारण होने के बावजूद कैसे वह सबसे असाधारण हैं। हम तटस्थ होकर उनका मूल्यांकन करते हैं और समझ पाते हैं कि देश-काल के विभेद के बावजूद आख़िर क्यों नेल्सन मंडेला से लेकर मार्टिन लूथर किंग जूनियर तक एवं अल्बर्ट आइंस्टीन से लेकर बराक ओबामा तक गांधीवाद में ही प्रेरणा ढूंढ़ते हैं। हम भक्ति के चश्मे से नहीं देखते फिर भी उनकी कमियों और तथाकथित ऐतिहासिक भूलों को वर्तमान के मापदंडों से नहीं बल्कि तात्कालिक परिस्थितियों के बरक्स रखकर निर्णयों को संपूर्णता में समझने की कोशिश करते हैं।
दुर्भाग्य से हम भारतीयों में से अधिकांश के जीवन में तीसरा चरण नहीं आ पाता।
गांधी को पढ़ा जाना चाहिए। अधिक से अधिक। उन पर विमर्श हो, संवाद हो, उनकी आलोचना हो, उन पर प्रहार हो, उन्हें ख़ारिज कीजिए, किंतु उन्हें पढ़कर। WhatsApp University के forwards के आधार पर नहीं।
देर रात यह लिखना पड़ा क्योंकि #गांधी_जयंती के दिन ट्विटर पर सबसे ज्यादा #गोडसे_अमर_रहे ट्रेंड कर रहा था।
वाह बहुत खूब 👌💐❤️
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteRespected sir...
ReplyDeleteReally, we, Indian, love to read Mandela and Luther but hate M.K. Gandhi who was the inspiration of them.
Einstein had truly predicted," the generation to come scarce believe that such a one as this ever in flesh and blood walked upon this earth" it is only because we try to escape ourselves from the third stage.
It's my first visit to this page and got amazed to read this sketch in such an apple pie order. We really miss your tenure here in Begusarai.
I think writing a blog is not enough, we have to work on ground to teach the idea of gandhi ji to society.
ReplyDeleteThose who are illiterate,how they can learn?
For them we have to teach them verbally by some means.
बहुत खूब सर , और बहुत ही सुंदर लिखा है आपने,आज हम उस दौर में खड़े है जब एक एमपी संसद में खड़े होकर गोडसे को तारीफ करती है , गोडसे की गुणगान करती है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर !
ReplyDeleteआपको हमेशा पढ़ता हूं ।
Bahut badhiya rahul bhai
ReplyDeleteDear Sir
ReplyDeleteWith due to respect I would like to say that our organization works on national level for Disaster related issues. My organization already working for COVID-19 in other state and as the convener of bihar state, I belong to purnea district and my personal experience for Relief Work in Nepal Earthquake 2015, Bihar Flood 2016,2017 Patna Flood 2019. So i would like to say that this time I have thirty active volunteer in purnia district
So it’s our pleasure to be a part for relief and Awareness work ion purnea.
For this act I shall be remain regretful to you.
Your’s faithfully
Mohammad Zulfequar
Mob- +91 9534415208
E-mail- sbfbihar@hotmail.com
बेहतरीन लिखें है आपने राहुल सर । उम्दा विश्लेषण किया है गांधी जी के बारे में। कुछ तथाकथित लोग व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी से चंद जानकारियां हांसिल कर गांधी जी के व्यक्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम करते हैं। भारत के तमाम नागरिक को गांधी जी के उल्लेखनीय योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए और उनके विचारों को मनन कर अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। गांधी जी ने जितने सारे आंदोलन किये यथा असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन ये सभी आंदोलन भारत की स्वंत्रता के मार्ग को खोलने का काम किया। अहिंसा के पुजारी बापू ने बिना हिंसा किये देश को आजाद कराने में अहम् योगदान दिया और इस योगदान को भारत पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्मरण करेगा।
ReplyDeleteसर मेंने पढ़ा गांधी जी की सत्य के प्रयोग तब जाना वो बहुत ही साधारण और सरल थे वो इतने सरल थे की हम बहुत आसानी से उनसे जुड़ जाते है और उनके साथ सफर करने लगते है। लेकिन हम जैसे ही गांधी को दूर से देखते है तो वो इतने असाधारण लगते है कि उनके लिए कोई भी कैसा भी विचार बना लेता है। सच कहा आपने गांधी पढ़ने की चीज है उन्हें या उनकी तस्वीर को दूर से देखकर हम गांधी को कभी नहीं समझ पाएंगे
ReplyDeleteआज कल आत्मनिर्भर और स्वदेशी ट्रेंड में है जबकि राष्ट्रपिता ने नए भारत का ये निर्माण तब से ही शुरू कर दिया था जब ये अपने बाल अवस्था में था
भूतकाल की सच्चाई को आज हम युवा वर्तमान की सच्चाई मानने से पता नही क्यु इतनी दूर भाग रहे हैं। जोस और आवेश में आकर कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा हमारे वीर पूर्वजों पर ऐसी लान्क्षन लगाना बहुत ही कष्टदायी व पीड़ादायक होती है। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ पनप रहे सोच से। इश्वर इन सबों को सन्मार्ग पर प्रेरित करें। हे राम🙏
ReplyDeleteThere has been a constant and effort from the communal forces to Malign Gandhiji and his legacy. Their favourite peddled arguments are history was written to suit those in power but always fail to produce any history which the believe is true. Never. They do not have any historians. They do not have any freedom fighters even which is visible in their forcible adoption of freedom fighters from the most prominent party during freedom struggle and thereafter. Patel, subhash Bose and Bhagat Singh would never have approved the divisive ideology. And these are the people they are projecting as if they belonged to their organisation.
ReplyDeleteThe hypocrisy with which nationalism is being peddled as the most sacrosanct element of being the citizen of India will pull the nation being fragmented into pieces. A nation is not just the geographical boundry but the people living within those boundry who are so diverse that every state of India is a nation in itself based on those diversity.
The makers of modern India have stitched this diverse fabric into one nation by giving representation and security to every community. This is under serious threat under the communal forces.
Gandhiji's greatest strength is his doctrine of non violence which gives direct insight into his charector. Non violence cannot be practiced by weak individuals. He identified himself with the masses. He was the true mass leader. He was a thinker unlike intellectually bankrupt right wing. His experiments with truth gives glimpses of his spiritual life. A man like him is a man in many centuries.
Loved the last para.
ReplyDeletehttps://www.newyorker.com/magazine/2018/10/22/gandhi-for-the-post-truth-age?utm_social-type=owned&utm_source=facebook&utm_medium=social&utm_brand=tny&mbid=social_facebook&fbclid=IwAR0OxOx2luWPFKfP6bjDl0gOixi0JTn-kmpIDh0jAG-5djc8Bk5g5xUbZpg
Bhaiya, I am from Ghorasahan and still I am pursuing graduation in history from Delhi University. I want to be an ias officer as you so my question is that how I read history to get more marks in optional subject? Please share your view. But one thing I like to say I am in b.a(hons) history second year and I will give upsc examination in 2023 and I keep history as my optional subject. Except this your writing skills is good. Please sir share your view. Thanks.
ReplyDelete👍👍👍
ReplyDeleteबहुत अच्छा सर हम सभी को जरूर समझना चाहिए एवं दिए गए राह पर चलना चाहिए।👏
ReplyDeleteRead this post today!!!!
ReplyDeleteIn these era of aggressive nationalism and hindutva agenda ruling the minds of people of majority community of this great nation I'm very much glad to see officers like you who still care for the great Mahatma Gandhi's policy of honestly and non-violence
सही कहा आपने, पहले गाँधी को पढ़िए, समझिये फिर अपनी राय बनाने के लिए आप स्वतंत्र हैं..
ReplyDeleteदोनों को पढ़िए गोडसे और गाँधी को, सावरकर को भी..
हिंसा कोई हल नहीं, वैचारिक प्रतिशोध का.. पर अगर गाँधी आज भी सम्पूर्ण विश्व में अपने त्याग और बलिदान के लिए पूज्य हैं तो, कट्टरता फैलाने वाले आज भी इंदिरा को धार्मिक उन्माद में, राजीव को नस्ली हिंसा के आवेग में धमाके में उड़ा देते हैं..
कल ही किसी ने फ़्रांसिसी राष्टपति इमैनुअल मैक्रोन को थप्पड़ जड़ दिया..
गाँधी आज ज्यादा प्रासंगिक हैं..
very nice
ReplyDeleteबहुत अच्छी बात कही सर आपने। किताब से दूरी बना कर वॉट्सऐप और फेसबुकिया ज्ञान बांट रहे युवाओं के लिए अच्छा संदेश हैं। दिल से धन्यवाद् सर। कभी मेरे खगड़िया जिला भी आए, आप जैसे सामाजिक व्यक्ति की बहुत आश्यकता हैं। शिक्षा का बंटा धार कर दिया गया है। मेरे यहां मंदिर मस्ज़िद के दीवार को घेरने/बनवाने के लिए विधायक जी संपर्क करने के लिए कहते हैं। लेकिन गरीबों के बच्चें के लिए,शिक्षा, कोचिंग और पुस्तकालय की बात की तो अभी तक कोई जवाब नहीं आया हैं। अब क्या रास्ता निकाला जाए इस समस्या का...... Please guide me
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ReplyDeleteअति उत्तम लेख सर
ReplyDeleteवर्तमान परिप्रेक्ष्य मे काफी समीचीन है आपकी यह खास ब्लॉग। पढ़ा भी और इसे ट्विटर पर साझा भी किया ताकि अन्य लोग भी पढ़ सके।
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