Wednesday 9 March 2022

जेल की बात


 अपनी नौकरी की शुरुआत में SDM के तौर पर या कुछ वर्ष पूर्व तक जिलाधिकारी के रूप में भी जब जेल में छापेमारी के लिए जाता था तो मोबाइल और सिम कार्ड सबसे common recoveries में शामिल होते थे। 


देर रात या अहले सुबह की रेड में जेल वार्ड की खिड़कियों के बाहर, शौचालयों में, पौधों के गमलों में मिट्टी के भीतर, ईंट के नीचे छुपाकर रखे हुए सिम कार्ड और मोबाइल के अलग-अलग किए हुए हिस्से मिलते थे। 


फ़िल्म और मीडिया द्वारा बनाए गए perception के कारण बाक़ियों की तरह मुझे भी लगता था कि इनमें से अधिकतर का उपयोग जेल के अंदर से क्राइम ऑपरेट करने में होता होगा। 


हाल के दिनों में रेड के दौरान जब मोबाइल मिलने लगभग बंद हो गए तो सालों से बनी हुई समझ में course correction करने की ज़रूरत महसूस हुई। 


वस्तुतः विभाग के आदेश से जब से जेल के अंदर फ़ोन बूथ की शुरुआत हुई तब से ही बंदियों को कक्षपालों से मिलीभगत कर मोबाइल का जुगाड़ करने की ज़रूरत पड़नी बंद हो गयी। 


अपवादों को छोड़ दें तो जेल के अंदर मोबाइल क्राइम ऑपरेट करने के बजाए अधिकतर अपनों से बात करने की छटपटाहट में रखे जाते थे। एक नीतिगत निर्णय कई बार ज़मीनी बदलाव लाने के साथ साथ पूर्वाग्रहों पर भी मारक प्रहार कर जाता है। 

4 comments:

  1. उम्मीद करते हैं की जिस सहजता के साथ इस बात का खंडन किया गया, वैसा ही हर जगह के जेल में व्यवस्था स्थापित हो। हालाँकि आये दिन यह विवादों में रहता है की जेल से अपराध को अंज़ाम दिया जा रहा। आपके औचक निरक्षण का मैं स्वागत करता हूँ और इस व्यवस्था के बारे में फैली अफवाहों पर ऐसी टिप्पणी जरूर अंतर लायेगी।

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  2. काबिले ऐ तारीफ सर

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  3. जी बिलकुल सही बोले सर,आखिर उन कैदीयो का भी परिवार होता है वे लोग भी समाज से जुड़े होते है.. आखिर वे लोग भी तो मानव ही है सर..

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  4. हां कई अवधारणाएं जमीनी हकीकत से अलग होतीं है. आपका अनुभव और उसकी व्याख्या बहुत अच्छी है. लिखते रहिए.

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