Tuesday, 8 March 2022

सशक्तिकरण की बात महिला दिवस पर

 बग़ैर शोर शराबे के सतह पर हो रहे महिला सशक्तिकरण की बानगी देखनी हो तो बिहार आइए। विगत लगभग डेढ़ दशक में जीविका के माध्यम से आर्थिक-सामाजिक और प्रकारांतर से राजनीतिक प्रक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी प्रतीकात्मक शुरुआत से बढ़ते हुए हक़दारी तक पहुँच गयी है। आज दस लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों की एक करोड़ जीविका दीदियाँ न केवल ग्रामीण बिहार के आज को सँवार रही हैं बल्कि आने वाली पीढ़ी की बेहतरी के लिए नींव भी मज़बूत कर रही हैं। 



यह तस्वीर पिछले सप्ताह की है जब कुछ जीविका सदस्यों से वार्तालाप का अवसर मिला था। इनमें से हर महिला की कहानी एक तरफ़ तो निष्ठुर परिस्थितियों का इतिहास बताती है वहीं दूसरी तरफ़ मानवीय जीवट में हमारा यक़ीन और पुख़्ता करती है। 


कहानी 1:- एक महिला है। अल्पसंख्यक समुदाय से आती है। कम उम्र में बेमेल शादी करा दी जाती है। पति की असामयिक मौत के बाद बच्चों सहित निराश्रित हो जाती है। गाँव में असंगठित श्रम का ढाँचा पूरी तरह से अनौपचारिक होने की वजह से पड़ोसियों के घरों में झाड़ू-बर्तन करने के बावजूद बदले में कभी-कभार (not fixed) दस-बीस रुपए और भोजन की एक थाली भर मिलती थी। बच्चों या ख़ुद के बीमार होने की स्थिति में कोई परिवार सहायता क्या कहें क़र्ज़ के रूप में भी पैसे देने के लिए तैयार नहीं होता था। असहाय होकर इस महिला ने बच्चों समेत आत्महत्या करने की भी बात सोचनी शुरू कर दी थी। ऐसे वक़्त में उसे गाँव की जीविका दीदियों का साथ मिलता है और समूह से जुड़कर लघु ऋण और बचत के माध्यम से आज उसकी किराने की अपनी दुकान है। उसके दोनों बच्चे स्कूल जाते हैं और गरिमा की ज़िंदगी जी रहे हैं। 


कहानी 2:- व्यक्तिगत बेबसी पर सामूहिक एवं सांगठनिक विजय की एक दूसरी कहानी सुनते हुए मन एक पंक्ति पर अटक गया जब एक महिला ने यह बताया कि समूह में जुड़कर साप्ताहिक बचत के रूप में दस रुपए जमा करने की गुंजाइश भी उसकी और दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले उसके पति की सामर्थ्य से बाहर थी। उसने भले ही अपने आज और आने वाले कल को बेहतर कर लिया हो पर महज़ 3-4 वर्ष पहले सप्ताह में दस रुपए तक की बचत नहीं कर पाने की बात हमारे ज़ेहन में चुभती रह जाती है। 


कहानी 3:- 18 वर्ष की एक लड़की, जिसकी शादी तीन साल पहले परिवार वाले करा रहे थे, बताती है कैसे उसने उस जीविका समूह से सहायता ली जिसमें उसकी माँ सदस्य थी और कैसे उस समूह ने परिवार के ऊपर दबाव बनाकर, क़ानूनी कार्रवाई की धमकी देकर उसकी शादी रुकवायी। आज वह BA Part 1 की छात्रा होने के साथ साथ एक ऐसे ही समूह में bookkeeping का काम भी करती है। 


बिहार में महिलाओं के आर्थिक-सामाजिक सशक्तिकरण की ऐसी अनगिनत कहानियाँ हर गाँव में देखने को मिल जाएँगी। फ़रवरी, 2020 में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में माननीय प्रधानमंत्री ने पूर्णिया की उद्यमी महिलाओं का ज़िक्र किया था। 



IMF की वरीय अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने Post-Pandemic वैश्विक मंदी से निपटने का सबसे कारगर उपाय सभी राष्ट्रों द्वारा महिलाओं की untapped आबादी को कार्यबल में शामिल करना बताया है। 


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