रवीन्द्र कालिया जी नहीं रहे। गत् वर्ष पटना कथा समारोह में पहली एवं आख़िरी मुलाक़ात हुई थी। उनकी लेखनी की प्रवाहमयता से जितना प्रभावित था, उनके व्यक्तित्व की सौम्यता ने और अधिक मुरीद बना लिया। 'ग़ालिब छूटी शराब' पढ़कर फ़िक्शन और नन-फ़िक्शन के मध्य का द्वंद्व जाता रहा था। '17 रानाडे रोड' एवं 'नौ साल छोटी पत्नी' भी रचनात्मकता के शिखर को स्पर्श करती है। किंतु जब कालिया जी के स्वयं के स्वर में 'गौरैया' का पाठ सुना तो लगा शिखर केवल ख्यात होना नहीं है।साम्प्रदायिकता के कुचक्र के समक्ष 'गौरैया' की निरीहता को कालिया जी ने चुनौती के स्तर पर खड़ा कर बिल्कुल नवीन किंतु सफल प्रयोग किया है। कालिया जी अपने वक़्त की हलचलों से निरपेक्ष नहीं थे, इसी कारण उनका साहित्य केवल रसबोध के स्तर पर ही नहीं युगचेतना के दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक है और रहेगा। मेरे प्रिय लेखकों में से एक मोहन राकेश के बारे में विशेष बातचीत के लिए उन्होंने दिल्ली आमंत्रित किया था। अफ़सोस अब वह मुलाक़ात नहीं हो पाएगी किंतु
पटना कथा समारोह में रवीन्द्र कालिया जी का कहानी पाठ एवं कालिया दम्पति के साथ हुई स्नेहसिक्त मुलाक़ात कभी नहीं भूलेगी।स्मृति शेष।
जनवरी, 2016
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