Wednesday, 9 June 2021

अव्यक्त

 कितना कुछ होता है 

अंदर

उफान की तरह।


भाषा पाती है 

अक्षम ख़ुद को। 

हज़ारों साल की कोशिशें

क़वायदें 

और दावे 

सब के सब पाए गए नाकाफ़ी। 


नाज़ुकी इतनी कि 

स्पंदन भी ख़तरा हो

दुर्धर्ष इतना कि 

ख़ारिज न किया जा सके। 


क़लम की रौशनाई 

कह नहीं पाती 

जो कोरे पन्ने 

कर जाते हैं बयां, 

कुछ एहसास 

अव्यक्त ही रह जाएँगे

पर रहेंगे, 

नरम गीले सीमेंट पर 

उकेरी गई आकृतियों की तरह 

जो जम कर हो जाएँगे 

ठोस

अमिट

अभिव्यक्त। 

8 comments:

  1. नाज़ुकी इतनी कि

    स्पंदन भी ख़तरा हो"
    इन पंक्तियों में ही अव्यक्त का व्यक्त छुपा बैठा है।
    सचमुच कुछ एहसास अव्यक्त ही रह जाएंगे !

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    1. दुनिया में हर तरह का डीएम देखा लेकिन आपके तरह कोई ना देखा

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  2. अभिव्यक्त भी अव्यक्त भी.. सुन्दर कविता..
    कहते हैं कविता,घनीभूत संवेदनाओं की उपज होती है..
    अपनी समझ में कुछ कम आया पर सीमेंट कहाँ से आया आपके दिमाग में?
    Cast in stone तो सुना था..

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  3. सर मै आपसे यही कहूंगा की आप अपने कार्य के प्रति अपनी निष्ठावान है।

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  4. बहुत सुन्दर कविता।
    सर मेरे मन मे एक बात है कि आपके पास इतना time कैसे मिल जाता है कि आप instragram ट्वीटर और ब्लॉग पर ये कविता लिख देते है । सोने और जागने का schudel हमे बताए।

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  5. बहुत सुंदर। समझने वाले अव्यक्त को भी समझ लेते हैं और वही खास होते हैं।

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. Unknown21 March 2022 at 11:07
    "कुछ एहसास

    अव्यक्त ही रह जाएँगे

    पर रहेंगे"

    हर व्यक्ति के जीवन में यह अव्यक्तता रह जाती है।

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