विगत एक दशक की लोकसेवा में अपनी टीम के प्रयास से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार हासिल करने का अवसर मिला पर आज से बारह वर्ष पूर्व मिला यह ‘सांत्वना पुरस्कार’ हमेशा ख़ास रहेगा।
एक लड़का जिसकी पूरी शिक्षा-दीक्षा राज्य के सुदूरवर्ती नेपाल सीमा पर अवस्थित क़स्बे में हुई हो, जिसे दसवीं के बाद औपचारिक शिक्षा लेने का मौक़ा न मिला हो, जो स्वाध्याय की बदौलत पहले सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी और फिर लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में दाखिल तो हो गया हो पर पृष्ठभूमि की साधारणता और परिवेश के अभिजात्य का संघर्ष कुछ इस क़दर हावी रहे कि सफलता के आनंद की जगह अस्तित्वमूलक प्रश्न स्थायी भाव बन जाए, जिसकी उपस्थिति को साथी प्रशिक्षु अधिकारी ‘Blink & Miss Probationer’ कहके ख़ारिज कर दें; ऐसे लड़के के लिए घुड़सवारी (Horse riding) जैसी तथाकथित इलीट प्रतिस्पर्धा में महज़ भाग लेना ही एक ‘स्टेटमेंट’ सरीखा था। वहाँ किसी और से कंपीट नहीं करना था, लड़ाई थी ख़ुद के आत्मविश्वास की। यह लड़ाई केवल उस घोड़े को साधने की नहीं थी जिसकी सवारी आप कर रहे थे, लड़ाई उस अदृश्य सवार को साधने की भी थी, जिसका बोझ आपके कंधों पे विरासत में मिला हो। तो भले ही यह पुरस्कार ‘सांत्वना’ का था, पर भविष्य के लिए इसमें बहुत बड़ा ‘आश्वासन’ भी था।
आज अपने पैतृक निवास पर धूल लगे इस स्मृति चिह्न को देखकर लगा कि अतीत की कुछ स्मृतियों से धूल हटानी चाहिए।
15/10/2023
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