Saturday 7 February 2015

व्यर्थता

अर्धनिद्रा और अर्धस्वप्न के मध्य कहीं
स्याह झुरमुटों से गुजरते हुए
व्यर्थता
'अर्थ' की परिभाषा से टकरा रही थी।
'सब कुछ' के पीछे की नियति
'हर कुछ' के पीछे का कारण
अपने वज़ूद का
अपने होने का,
व्यर्थता
'अर्थ' मांग रही थी।


हर कोई कर रहा जतन
कोई न कोई जवाब पाने को
पर
सवाल मौजूद है
शाश्वत है
खड़ा है चुनौती की तरह
'होने'  पर।
हर इंसान चलता फिरता
प्रश्नवाचक चिन्ह है।



कहीं से चलकर
 कहीं भी
पहुँचने की जद्दोजहद में
कहीं भी
न पहुँच पाने की व्यर्थता।
शून्य से उत्पन्न व्योम
शून्य से ऊर्जस्वित व्योम
भूलकर अपना उत्स,
ग़फ़लत की रफ़्तार में है
और
बग़ैर उसकी जानकारी के
एक असीम शून्य
तारी हो रहा क्रमशः हर कहीं
बाहर -भीतर।
शून्य देख रहा रफ़्तार को
शून्य हंस रहा बेसबब
व्यर्थता पर सारी कवायदों के।


फड़कती रहती है
कनपटी की नस,
नींद की बड़बड़ाहट सरीखा
बेमतलब है हर कुछ।
या फिर,
'अर्थ' स्वयं भ्रम है,
धोखा है,
बेमानी है,
अर्थहीन है!
और 'व्यर्थता'
शाश्वत,
पवित्र,
असीम एवं
अर्थवान!
शून्य 'जवाब' मांग रहा।

                       ('तद्भव' के जून 2016 अंक में प्रकाशित कविता।)

10 comments:

  1. कही से चलकर कही भी पहुचने की जद्दोजेहद में
    कही भी
    न पहुच पाने की ब्यर्थता.....

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  2. आयु सोचती है, जवानी करती है.

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  4. ज़बरदस्त! इतना भीतर कैसे चले जाते है! वाह!👏👏👏👏👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏

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  5. दिल व मस्तिष्क से होते जेहन में फैल गयी ,
    सफल होने की व्यर्थता
    दिन में भी रात में भी ।
    मायूस पड़ी कोलाहल,पूरा नहीं कोई हल
    जिंदगी की पहेली
    सुलझाने की व्यर्थता ।

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  6. Sir I am a very big fan of yours..sir I have met you in your office( Purnia) with name Abhishek if you could remember.I am also IAS aspirant now studying in 12 STD.

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  7. बहुत खूब लिखा है । 👍🏻

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