रात और दिन
ज़ीने से टंके
दो झरोखों की तरह,
वक़्त की साँकल से
खुलते- अनखुलते,
एक-दूसरे को ताकती
सुरंग,
याकि
एक इनफिनिटी लूप में
गुत्थमगुत्था
काल प्रवाह ।
प्रवाह, जिसको बाँटा है
इकाइयों की सटीक आवृतियों में
ताकि यक़ीन दिलाया जा सके
कि कुछ भी यादृच्छिक नहीं है ।
प्रवाह, जिसको बाँधा है
टाइम और स्पेस की
जुगलबंदी में
ताकि बताई जा सके
वजह
हर तरतीब
और
बेतरतीबी की ।
रात और दिन
हिंट्स हैं
एक अनसॉल्व्ड पज़ल के
जिसे सुलझाने की क़वायद में हैं
तमाम, जाने-अनजाने ।
रात और दिन
रिमाइंडर हैं
कि
बारम्बार दुहराती क्रिया से
क्षय की प्रतीति भले न हो
सब कुछ होता जाता है
तमाम, जाने-अनजाने ।
रात और दिन
पॉज़ हैं
नेपथ्य में चल रही
किसी अभ्यंतर क्रिया के शायद
जिसे जानने की वर्जना है
पर जिसके कर्ता हैं
तमाम, जाने-अनजाने ।