प्रेम में साझा होता है,
सब कुछ,
तक़रीबन।
साझी होती हैं स्मृतियाँ,
सपने,
सुख,
शिद्दत,
आतुरता।
साझी है वह डोर भी
टिका है जिस पर
सम्पूर्ण ताना- बाना
साझे वक़्त में
साझी अनुभूतियों से
जो बुना जाता है।
साझा संघर्ष
राह साझी
उबड़-खाबड़ पथरीली
या कि
राजमार्ग सी प्रशस्त
सब कुछ साझा ही होता है
तक़रीबन।
पर, उदास कमज़ोर साझा क्षणों में भी
कई बार कुछ चीज़ें
अपने स्वरूप में एकल हो जाती हैं।
एकल हो जाता है आपका एकांत,
पीड़ा को पसंद है अंतर्मुखी होना
और
आपकी उदासी भी आपकी ही होती है
फ़क़त आपकी।